लोगों की राय

विभिन्न रामायण एवं गीता >> भगवती गीता

भगवती गीता

कृष्ण अवतार वाजपेयी

प्रकाशक : भगवती पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :125
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6276
आईएसबीएन :81-7775-072-0

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

313 पाठक हैं

गीता का अर्थ है अध्यात्म का ज्ञान ईश्वर। ईश्वर शक्ति द्वारा भक्त को कल्याण हेतु सुनाया जाय। श्रीकृष्ण ने गीता युद्ध भूमि में अर्जुन को सुनाई थी। भगवती गीता को स्वयं पार्वती ने प्रसूत गृह में सद्य: जन्मना होकर पिता हिमालय को सुनाई है।

रुद्रचण्डी


घोरचण्डी महाचण्डी चण्डमुण्डविखण्डिनी।
चतुर्वक्ता महावीर्या महादेवविभूथिता।।1।।
रक्तदन्ता वरागेहा महिषासुरमद्रिनी।
तारिणी जननी दुर्गा चण्डिका चण्डविक्रमा।।2।।
गुह्यकाली जगद्धात्री चण्डी च यामलोद्भवा।
श्मशानवासिनी देवी घोरचण्डी भयानका।।3।।
शिवा घोरा रुद्रचण्डी महेशा गणभूषिता।
जान्हवी परमा कृष्णा महात्रिपुरसुन्दरी।।4।।
श्रीविद्या परमाविद्या चण्डिका वैरिमद्रिनी।
दुर्गा दुर्गशिवाघोरा चण्डहस्ता प्रचण्डिका।।5।।
माहेशी बगलादेवी भैरवी चण्डविक्रमा।
प्रमथैर्भूषिता कृष्णा चामुण्डामुण्डमद्रिनी।।6।।
रणखण्डा चन्द्रघण्टा रणेरामवरप्रदा।
मारणी भद्रकाली च शिवा घोरभयानका।।7।।
विष्णुप्रिया महामाया नन्दगोपगृहोद्भवा।
मंगला जननीचंडी महाकुद्धा भयकरी।।8।।
विमला भैरवी निद्रा जातिरूपा मनोहरा।
तृष्णा निद्रा क्षुधा माया शक्तिर्मायामनोहरा।।9।।
तस्मै देव्यै नमस्तस्यै सर्वरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमोनमः।।1०।।
भवानी च भवानी च भवानी चोव्यते बुधैः।
भकारस्तु भकारस्तु भकारः केवलः शिवः।।11।।
मह्मचण्डी शिवा घोरा मह्मभीमा भयानका।
कांचनी कमला विद्या महारोगविमद्रिनी।।12।।
गुह्यचण्डी घोरचण्डी चण्डी त्रैलोक्यदुर्लभा।
देवानां दुर्लभा चण्डी कद्रयामलसमता।।1३।।
अप्रकाश्या मह्मदेवी प्रिया रावणमद्रिनी।
मत्स्यप्रिया मांसरता मत्स्यमांसबलिप्रिया।।14।।
मदमत्ता महानित्या भूतप्रमथसंगता।
महाभागा महासभा धान्यदा धनरलदा।।15।।
वस्त्रदा मणिराज्यादि सदाविषयवर्धिनी।
मुक्तिदा सर्वदा चण्डी मह्मविपदनाशिनी।।16।।
रुद्रध्येया रुद्ररूपा रूद्राणी रुद्रवल्लभा।
रुद्र शक्ति रुद्ररूपा रुद्रमुखसमन्विता।।17।।
शिवचण्डी महाचण्डी शिवप्रेतगणान्विता।
भैरवी परमाविद्या महाविद्या च षोडशी।।18।।
सुन्दरी परमापूज्या महात्रिपुरसुन्दरी।
गुह्यकाली भद्रकाली महाकालविमद्रिर्ना।।19।।
कृष्णा तृष्णास्वरूपा सा जगन्मोहनकारिणी।
अतिमन्त्रा महालज्जा सर्वमंगलदायिनी।।2०।।
घोरतन्त्री भीमरूपा भीमा देवी मनोहरा।
मंगला बगला सिद्धिदायिनी सर्वदा शिवा।।21।।
स्मृतिरूपा कीर्तिरूपा योगर्द्रिरषि सेविता।
भयानका मखदेवी भयदुःख विनाशिनी।।22।।
चण्डिका शक्तिहस्ता च कौमारी सर्वकामदा।
वाराही च वराहास्या इन्द्राणी शक्रपूजिता।।23।।
माहेश्वरी महेशस्य महेशगणभूषिता।
चामुण्डा नारसिंही च नृसिंशत्रुविमद्रिनी।।24।।
सर्वशत्रुप्रशमनी सर्वारोग्यप्रदायिनी।
इति सत्यं महादेवी सत्यं सत्यं वदाम्यहम्।।25।।

यह 25 श्लोकों की स्तुति रुद्रचण्डी कहलाती है। इसके प्रथम दस श्लोकों का पाठ कामापराधों के शमन करने के लिये होता है। बाद के पन्द्रह श्लोक भी अघमर्षण के लिये किये जाते है। व्यक्ति निर्मल होने पर ही आध्यात्मिक शान्ति का अधिकारी होता है। चण्डी का अर्थ घोर होता है। इसका घोरस्वरूप एक सहज एवं आवश्यक अवस्था है। महिष, शुंभ, निशुंभ, चण्ड, मुण्ड, जैसे क्रूरकर्मा और प्रचण्ड पराक्रमी असुरों का विनाश सौम्य रूप से सम्भव नहीं होता इसीलिये परमवात्सल्यरूपिणी माँ को चण्डी, चामुण्डा जैसे रूप धारण करने पड़ते हैं। इन श्लोकों में वह रुद्र और विकेट हो जाती है इसलिये उसकी उग्रता और बढ़ जाती है। परमा का यह स्वरूप भक्तों को भयभीत करने के लिये नर्ही होता प्रत्युत् उसके दुष्कर्मों का नाश करने के लिये होता है। चण्ड और मुण्ड नामक दैत्य एक दुष्प्रेरणा है जो शुंभ और निशुंभ के काम को अहंकार के माध्यम से उद्दीप्त करते हैं। शुंभ-निशुंभ के स्तुतिगान में वे उसका, उसके सुन्दर वस्तुओं के प्रति मोह, अपहरण और बल की महिमा बखानते हैं, और एक दुष्कर्म के लिये प्रेरित करते हैं। इस प्रेरक शक्ति के शुद्ध रूप को चामुण्डा कहा जाता है, चामुण्डा का प्रखर तेजस्वी रूप चण्डी कहलाता है। माँ के दुर्गा, चामुण्डा अथवा चण्डी स्वरूप के समक्ष बैकर इसका नित्यपाठ करने से पापक्षय होता है और साधक निर्मल व निर्भय होता है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. अपनी बात
  2. कामना
  3. गीता साहित्य
  4. भगवती चरित्र कथा
  5. शिवजी द्वारा काली के सहस्रनाम
  6. शिव-पार्वती विवाह
  7. राम की सहायता कर दुष्टों की संहारिका
  8. देवी की सर्वव्यापकता, देवी लोक और स्वरूप
  9. शारदीय पूजाविधान, माहात्म्य तथा फल
  10. भगवती का भूभार हरण हेतु कृष्णावतार
  11. कालीदर्शन से इन्द्र का ब्रह्महत्या से छूटना-
  12. माहात्म्य देवी पुराण
  13. कामाख्या कवच का माहात्म्य
  14. कामाख्या कवच
  15. प्रथमोऽध्यायः : भगवती गीता
  16. द्वितीयोऽध्याय : शरीर की नश्वरता एवं अनासक्तयोग का वर्णन
  17. तृतीयोऽध्यायः - देवी भक्ति की महिमा
  18. चतुर्थोऽध्यायः - अनन्य शरणागति की महिमा
  19. पञ्चमोऽध्यायः - श्री भगवती गीता (पार्वती गीता) माहात्म्य
  20. श्री भगवती स्तोत्रम्
  21. लघु दुर्गा सप्तशती
  22. रुद्रचण्डी
  23. देवी-पुष्पाञ्जलि-स्तोत्रम्
  24. संक्षेप में पूजन विधि

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

लोगों की राय

No reviews for this book